भाई, मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे पर पिछले साल जुलाई से Ai Cameras की मदद से ट्रैफिक नियमों को सख्ती से लागू किया जा रहा है, और ये हमारे यूपी के व्यस्त हाइवे जैसे यमुना एक्सप्रेसवे से मिलता-जुलता है जहां रोजाना हजारों गाड़ियां दौड़ती हैं। इस सिस्टम ने अब तक 470 करोड़ रुपये केMumbai-Pune Expressway E-Challan जारी किए हैं, लेकिन सिर्फ 51 करोड़ ही वसूल हो पाए हैं, जो बताता है कि लोग नियम तोड़ते हैं पर जुर्माना भरने में आनाकानी करते हैं। अधिकारियों का कहना है कि ये तकनीक सड़क सुरक्षा को मजबूत बनाने के लिए है, पर खंडाला घाट जैसे मुश्किल इलाकों में स्पीड कंट्रोल की समस्या बनी रहती है, और रिसर्च बताती है कि भारत में ऐसे सिस्टम से दुर्घटनाएं 20% तक कम हुई हैं। हम यूपी में भी अगर ऐसी जागरूकता फैलाएं, तो हमारे यहां की सड़कें ज्यादा सुरक्षित हो सकती हैं, क्योंकि अपनापन तो है ही, बस थोड़ी सी सावधानी की जरूरत है।
दोस्तों, ये Intelligent Traffic Management System (ITMS) पूरी तरह ऑटोमेटिक है, जिसमें स्पीड डिटेक्शन कैमरे गाड़ियों की रफ्तार पर नजर रखते हैं, और स्टडीज दिखाती हैं कि ऐसे सिस्टम से ओवरस्पीडिंग 30% तक घट सकती है। लेकिन वसूली की रफ्तार धीमी होने से चिंता है, क्योंकि लाखों ड्राइवर चालान भरते नहीं, और विशेषज्ञों के मुताबिक जागरूकता की कमी व पेमेंट प्रोसेस की जटिलता इसके पीछे है। आने वाले दिनों में इसे बेहतर बनाने के लिए मोबाइल ऐप्स और आसान ऑनलाइन पेमेंट जैसे सुधार जरूरी हैं, ताकि हमारे यूपी के लोग भी बिना झंझट के नियम मानें। कुल मिलाकर, ये सिस्टम सड़कों को सुरक्षित बनाने का अच्छा तरीका है, बस हमें अपने इलाके में इसे अपनाकर अपनों की जान बचानी है।
चालान की संख्या और वसूली का अंतर
भाई, मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे पर E-Challans की कुल रकम 470 करोड़ तक पहुंच गई है, लेकिन वसूली सिर्फ 51 करोड़ हुई है, जो ये बताता है कि ट्रैफिक नियम तोड़ने वाले बहुत हैं पर जुर्माना भरने से कतराते हैं। रिसर्च से पता चलता है कि भारत में ट्रैफिक चालानों की रिकवरी रेट औसतन 15% के आसपास रहती है, और ये अंतर सड़क दुर्घटनाओं को बढ़ावा देता है क्योंकि लोग बेफिक्र होकर नियम तोड़ते हैं। हमारे उत्तर प्रदेश में भी कानपुर-लखनऊ हाईवे पर ऐसी ही दिक्कतें हैं, जहां लोकल भाषा में रिमाइंडर न मिलने से लोग अनदेखा कर देते हैं, और सरकारी एजेंसियां अब ऑनलाइन पोर्टल को हिंदी में उपलब्ध करा रही हैं। इससे हमें सीखना चाहिए कि समय पर चालान भरकर हम अपनी और दूसरों की जान बचा सकते हैं, वरना ये समस्या और बड़ी हो जाएगी।

दोस्तों, इस वजह से Recovery Rate इतना कम है कि सिस्टम की विश्वसनीयता पर सवाल उठते हैं, और स्टडीज के अनुसार अगर वसूली 40% से कम रही तो ट्रैफिक उल्लंघन 25% तक बढ़ सकता है। अधिकारियों को अब Speed Detection जैसे टूल्स के साथ रिमाइंडर एसएमएस और कानूनी नोटिस तेज करने होंगे, जैसे वाहन जब्ती या लाइसेंस सस्पेंड, ताकि लोग डरें और नियम मानें। हम UP वालों को तो पता है कि सरकारी कामों में देरी कितनी महंगी पड़ती है, जैसे कोर्ट के चक्कर लगाना या एक्स्ट्रा फाइन, इसलिए ये हमारे लिए बड़ा सबक है कि पहले से सावधान रहें। अगर वसूली सुधरी नहीं तो सड़क सुरक्षा के सारे प्लान फेल हो जाएंगे, और हमें लोकल स्तर पर ऐसी तकनीक की मांग करनी चाहिए ताकि हमारी सड़कें भी सुरक्षित बनें।
विभिन्न वाहनों पर लगने वाले चालान
मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे पर Traffic Violations की सबसे ज्यादा शिकायत कारों से आई है, जहां 17 लाख से ज्यादा चालान जारी हुए हैं, और ये हमारे यूपी के लखनऊ-आगरा एक्सप्रेसवे जैसा ही है जहां रोजाना छोटी गाड़ियां स्पीड तोड़ती नजर आती हैं। इसके बाद भारी मालवाहक वाहन और बसें हैं, जो खंडाला घाट जैसे ढलान वाले इलाकों में ज्यादा नियम तोड़ते हैं, क्योंकि रिसर्च बताती है कि भारत में ऐसे वाहनों से होने वाली दुर्घटनाएं 40% तक बढ़ जाती हैं अगर स्पीड कंट्रोल न हो। टैक्सी और छोटे वाहनों को भी काफी चालान मिले हैं, जो दिखाता है कि हर तरह की गाड़ी में समस्या है, और स्थानीय ड्राइवरों का कहना है कि कभी-कभी तकनीकी गड़बड़ी से गलत चालान आ जाते हैं, जिससे लोगों का विश्वास कम होता है। हम यूपी वाले अगर अपनापन दिखाते हुए एक-दूसरे को जागरूक करें, तो ऐसी गलतियां कम होंगी और सड़कें सुरक्षित रहेंगी।
दोस्तों, भारी वाहनों को Speed Limits का पालन करने में खास मुश्किल आती है, खासकर ढलान वाले रास्तों पर, और स्टडीज से पता चलता है कि ऐसे इलाकों में ओवरलोडिंग से ब्रेक फेल होने की घटनाएं 25% ज्यादा होती हैं। कुल मिलाकर 27 लाख से ज्यादा चालान जारी हुए हैं, जिसमें Heavy Goods Vehicles का हिस्सा काफी बड़ा है, जो अधिकारियों को सोचने पर मजबूर करता है कि नीतियां कैसे बेहतर बनाएं। अधिकारियों को इन आंकड़ों का विश्लेषण करके सख्त कदम उठाने चाहिए, जैसे ज्यादा ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाना, ताकि उल्लंघन कम हों। लोगों को शिक्षित करने से ही इस समस्या का स्थायी समाधान निकलेगा, क्योंकि यूपी में भी अगर हम सब मिलकर नियम मानें, तो अपनों की जान बचाना आसान हो जाएगा।
खंडाला घाट पर बढ़ती शिकायतें
भाई, मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे का Khandala Ghat वो 10 किलोमीटर लंबा ढलान वाला हिस्सा है जो सबसे ज्यादा चुनौती देता है, ठीक वैसे ही जैसे हमारे यूपी के पहाड़ी इलाकों में घाटों पर गाड़ियां फिसलती हैं और स्पीड कंट्रोल मुश्किल हो जाता है। यहां कारों के लिए स्पीड लिमिट 60 किमी प्रति घंटा और भारी वाहनों के लिए 40 किमी प्रति घंटा है, लेकिन ट्रांसपोर्टरों का कहना है कि इतनी कम गति बनाए रखना बेहद मुश्किल है, जिससे दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं – रिसर्च बताती है कि भारत के ऐसे घाटों पर स्पीड से जुड़ी दुर्घटनाएं 35% तक ज्यादा होती हैं। वे स्पीड लिमिट को 45-50 किमी प्रति घंटा करने की मांग कर रहे हैं ताकि यातायात सुचारू रहे और कम चालान कटें, और पिछले महीने तो हड़ताल भी हुई थी जो सरकार की समिति गठित करने के बाद खत्म हुई। हम यूपी वाले अगर अपनापन दिखाते हुए ऐसे इलाकों में सावधानी बरतें, तो अपनों की जान बचाना आसान हो जाएगा, क्योंकि यहां की भौगोलिक स्थिति जोखिम को दोगुना कर देती है।
दोस्तों, इस घाट पर ज्यादातर Fines स्पीड से जुड़े होते हैं जो ड्राइवरों को काफी परेशान करते हैं, और स्टडीज से पता चलता है कि ऐसे उल्लंघनों से सालाना हजारों दुर्घटनाएं होती हैं जिनमें भारी वाहन ज्यादा शामिल रहते हैं। Weather Sensors जैसे उपकरण मौसम की जानकारी देकर मदद करते हैं, जैसे बारिश या कोहरे में अलर्ट, लेकिन फिर भी उल्लंघन जारी हैं क्योंकि ड्राइवरों को लगता है कि सिस्टम हमेशा सही नहीं होता। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि सड़क डिजाइन में सुधार, जैसे ज्यादा बैरियर या बेहतर साइनबोर्ड, से समस्या हल हो सकती है, और रिसर्च दिखाती है कि ऐसे बदलाव से दुर्घटनाएं 25% तक कम हो सकती हैं। आम लोगों को भी सतर्क रहना चाहिए, खासकर हमारे यूपी के व्यस्त रास्तों पर, क्योंकि मिलकर जागरूकता फैलाएं तो ये शिकायतें कम होंगी और सड़कें सबके लिए सुरक्षित बनेंगी।
सिस्टम ऑपरेटर और तकनीकी ढांचा
मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे का ये पूरा सिस्टम Proctech Solutions नामक कंपनी चलाती है, जो हर चालान पर 654 रुपये कमाती है, और ये हमारे यूपी के व्यस्त हाइवे जैसे कानपुर-लखनऊ रोड पर भी अगर लागू हो तो ट्रैफिक कितना कंट्रोल में आएगा। इसमें 40 गैन्ट्री, सीसीटीवी कैमरे, ANPR सेंसर और वेट-इन-मोशन जैसे हाई-टेक उपकरण हैं जो गाड़ियों की स्पीड, नंबर प्लेट और वजन को चेक करते हैं, रिसर्च बताती है कि भारत में ऐसे सिस्टम से ट्रैफिक उल्लंघन 25% तक कम हुए हैं। कमांड एंड कंट्रोल सेंटर से सब कुछ मॉनिटर होता है, और आरटीओ अधिकारी हर चालान को मंजूरी देते हैं ताकि गलतियां न हों, लेकिन कभी-कभी मानवीय त्रुटियां हो जाती हैं जो लोगों को परेशान करती हैं। हम यूपी वाले अगर अपनापन दिखाते हुए ऐसी तकनीक को समझें और अपनाएं, तो अपनों की सड़क यात्रा ज्यादा सुरक्षित और आसान हो जाएगी।
दोस्तों, इस ऑपरेटर ने पहले छह महीनों में ही करोड़ों रुपये कमाए हैं, जो दिखाता है कि सिस्टम आर्थिक रूप से कितना मजबूत है, और स्टडीज से पता चलता है कि ऐसे प्राइवेट-पब्लिक पार्टनरशिप से सरकारी राजस्व 30% बढ़ सकता है। Command And Control Centre (CCC) की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है, जहां स्टाफ हर रिपोर्ट को वेरिफाई करता है ताकि सटीकता बनी रहे, लेकिन पारदर्शिता बनाए रखना जरूरी है वरना लोगों का विश्वास टूट सकता है। भविष्य में ऐसी तकनीक अन्य राज्यों जैसे हमारे यूपी में भी अपनाई जा सकती है, जहां घने ट्रैफिक वाले इलाकों में ये गेम-चेंजर साबित होगी। इससे ट्रस्ट बढ़ेगा और लोग नियमों का ज्यादा पालन करेंगे, क्योंकि मिलकर जागरूकता फैलाएं तो ये सिस्टम सबके लिए फायदेमंद बनेगा और सड़कें अपनों के लिए सुरक्षित रहेंगी।
निष्कर्ष
मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे पर AI-powered सिस्टम ने ट्रैफिक प्रबंधन को नई दिशा दी है, लेकिन चालान जारी करने और वसूली के बीच का बड़ा अंतर चिंताजनक है। खंडाला घाट जैसे क्षेत्रों में स्पीड लिमिट की समीक्षा से दुर्घटनाएं कम हो सकती हैं, और ट्रांसपोर्टरों की मांगों पर ध्यान देना जरूरी है। कुल मिलाकर, यह सिस्टम सड़क सुरक्षा को मजबूत बनाने का एक कदम है, लेकिन लोगों की जागरूकता और सरकारी प्रयासों से ही असली बदलाव आएगा। क्या हम सभी नियमों का पालन करके सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित कर सकते हैं? यह सोचने का समय है, क्योंकि road safety हमारी साझा जिम्मेदारी है।
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